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लेखनी कहानी -08-Jul-2022 यक्ष प्रश्न 1

बफर सिस्टम  - 2 

पार्टी में आये काफी देर हो चुकी थी । सामने खाना मेज पर लगा हुआ था । खाने को देखकर अच्छों अच्छों के मुंह में लार आ जाती है , फिर मैं तो एक तुच्छ प्राणी हूं । अब सब्र नहीं हो रहा था । मैं सीधा प्लेट उठाने के लिए काउण्टर पर चला गया । 
मुझे प्लेट वाले काउंटर पर खड़े देखकर हंसमुख लाल जी दौड़ते हुए आये और बोले 
"क्या गजब करते हो भाईसाहब ? आप पहले कभी किसी पार्टी शार्टी में गये हो या नहीं" ? 

इतने बेहूदे प्रश्र की उम्मीद नहीं थी मुझे उनसे । मैंने अपनी आंखें तरेरी तो वे सकपका कर कहने लगे 
"मेरा कहने का मतलब यह था कि अभी प्लेट नहीं लेनी है । अभी तो पहले नाश्ता (स्नैक्स) करेंगे । फिर उसे पचायेंगे और अंत में फिर खाना लेंगे "। 

मैंने कहा कि क्या तुम पूरी रात का इंतजाम करके आये हो ? 

"नहीं भाईसाहब । आप तो ठहरे देवता आदमी । आपको तो दुनियादारी आती नहीं है । आप तो ऐसा करो । मेरे साथ साथ आ जाओ और जैसा मैं करूं वैसा ही करो । फिर आप देखना कैसा आनंद आता है" । 

मैं आश्चर्य में पड़ गया कि क्या अब मुझे हंसमुख लाल जी का पिछलग्गू बनना पड़ेगा ? लेकिन मुझे रहीम दास जी का वह दोहा याद आ गया जो मैंने छठी कक्षा में पढ़ा था 

पावस आते देख रहीम , कोयल साधे मौन ।
अब दादुर वक्ता भये , हमको पूछत कौन ।।

मैंने मन ही मन कहा कि समय समय की बात है । समय कभी एक जैसा नहीं रहता है किसी का । समय कभी राजा बना देता है तो कभी रंक । राजा बनने पर अभिमान नहीं करना चाहिए और रंक बनने पर शोक नहीं करना चाहिए । बादल की इतनी हैसियत नहीं है कि वह सूरज को हमेशा ढक कर रख सके । भोजन के क्षेत्र में हंसमुख लाल जी का ज्ञान और अनुभव मुझसे लाख गुणा बेहतर है । इसलिए मुझे उनकी बात मानने में ही अपनी भलाई महसूस हुई । मैं हंसमुख लाल जी के पीछे पीछे चल दिया । 

वो मुझे पांडाल के उस हिस्से में लेकर गये जहां भांति-भांति के स्टॉल सजे हुए थे । कोई गोलगप्पे का, कोई पनीर टिक्का का , कहीं आलू भल्ला , कहीं पनीर चिलड़ा , पिज्जा , बर्गर , पाश्ता , चाऊमीन , राज कचौरी , कोटा कचौरी ,मूंगलेट, पाव भाजी, भेलपूरी, भांति भांति के कुलछे भांति-भांति के पकौड़े , जलेबी और न जाने क्या क्या । इतने सारे आइटम देखकर मैं आश्चर्य चकित रह गया । मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं । 

मैंने कहा : इतने सारे स्टॉल ? 
वो बोले : सेठों की शादी है , जरा धूम तो होगी ही । अभी तो देखते जाओ । इतने आइटम हैं कि गिनती भूल जाओगे ।

वे हंसते हुए कहने लगे कि सेठ लोग वैसे तो कंजूस होते हैं लेकिन जब बाप दादा का नाम रौशन करना हो तो धर्मार्थ कार्य जैसे विद्यालय , अस्पताल, धर्मशाला , प्याऊ , मंदिर आदि पर जी खोल कर पैसा खर्च करते हैं ये सेठ लोग । आपने जितने भी सार्वजनिक प्रयोग के  भवन देखें होंगे वे सब सेठों के द्वारा ही बनवाये गये हैं । अन्य किसी ने अगर कुछ भवन बनवाये हैं तो वे केवल अपने समाज अपनी जाति के लिए ही बनवाये है न कि सर्व समाज के लिए । जैसे फलां जाति का हॉस्टल , अमुक जाति की धर्मशाला आदि आदि। इसी तरह अपने घर में जब शादी होती है तो अपनी प्रतिष्ठा का प्रर्दशन करने के लिए ये सेठ लोग अपना खजाना खोल देते हैं । कभी कभी तो इस झूठे प्रतिष्ठा प्रर्दशन के कारण उनकी सात पुश्तें कर्ज में डूबी पड़ी  रहती हैं।

मुझे उनकी बात सोलह आने सही लगी । आज तो मुझे हंसमुख लाल जी का एक नया अवतार दिखाई दे रहा था ।भोजन पुराण के वे प्रकांड पंडित लग रहे थे । भोजन शास्त्र का इतना ज्ञान भरा पड़ा है उनके अंदर , यह पहले पता नहीं था । पुराने लोगों ने सही कहा है कि जब हम एक दूसरे के नजदीक आते हैं तो एक दूसरे के गुणों अवगुणों के बारे में जान जाते हैं । 
मैं गोलगप्पे की स्टॉल पर जाने लगा । मुझे गोलगप्पे पसंद हैं । मुझे उधर जाते देखकर उन्होंने मुझे लगभग खींचते हुए रोका और बोले 
उधर कहां जा रहे हो पापड़ी खाने और खट्टा पानी पीने । ये आइटम तो लेडीज के लिए होता है । वही टूट कर पडतीं हैं इन गोलगप्पों पर । आप तो माल खाओ माल । गोल गप्पे खाने से जल्दी पेट भर जाता है । पानी ही तो रहता है उनमें । हम क्या पानी पीने आए हैं यहां पर ? उधर चलो, पनीर टिक्का खायेंगे पहले । शाही चीजें खाओ । पनीर में फैट्स भी नहीं होते हैं ना । लोग अपना पेट तो गोलगप्पों से ही भर लेते हैं और बाकी का सारा खाना डस्टबिन में डालते हैं । पता नहीं कब सीखेंगे लोग खाना खाने का सलीका ? 
मैंने आश्चर्य से पूछा : वो कैसे ? 
बोले : भाईसाहब । वो क्या है कि लोग एक दो गोल गप्पे तो खाते नहीं हैं , भरपेट खाते हैं । पेट तो गोलगप्पों से ही भर जाता है उनका , पर मन बड़ा चलायमान होता है । वह संपूर्ण पदार्थों को देखकर लालायित होता है और सबको उदरस्थ करने की कामना करता है । मन अपने मालिक (पेट) को सारी स्टॉल पर ले जाता है । वो लोग भर भर प्लेट सामान लाते हैं और थोड़ा सा चख कर बाकी सब डस्टबिन में डाल देते हैं । 

मैंने सामने पड़े डस्टबिन को देखा । हंसमुख लाल जी की बातें शत प्रतिशत सत्य थीं । डस्टबिन में प्लेट कम और झूठन ज्यादा नजर आ रही थी । मैने भूमंडल के समस्त नर रूपी देवता और नारी रूपी  देवियों को प्रणाम किया जिनके कारण वह डस्टबिन झूठे खाद्यान्नों से भरा पड़ा था । भगवान से प्रार्थना की कि इनको सद्बुद्धि दे जिससे अन्न का मूल्य समझें और भविष्य में झूठन ना छोड़ें । फिर हम लोग पनीर टिक्का के स्टॉल की ओर बढ़ गये । 

पनीर टिक्का की स्टॉल पर एक किलोमीटर लंबी लाइन लगी हुई थी । सब लोग अपने हाथ में प्लेट पकड़कर अपनी अपनी बारी का इन्तजार कर रहे थे । मैंने हंसमुख लाल जी से कहा 
"बंधु, इतनी लंबी लाइन तो नोटबंदी में भी किसी एटीएम या बैंक में नहीं लगी थी । ऐसा लगता है कि अपना नंबर तो सुबह तक भी नहीं आयेगा । चलो कहीं दूसरी स्टॉल पर चलते हैं "। 

मेरी बात सुनकर वे ठहाका मारकर हंसे और कहने लगे : बस, इतनी सी लाइन देखकर घबड़ा गये ? थोड़ा सा सब्र रखो और अपने छोटे भाई का जादू देखो कि किस तरह पांच मिनट में व्यवस्था होती है इनकी । 

और उन्होंने एक वेटर को अपने पास बुलाया । वेटर के हाथ में एक दस का नोट थमाया और कान‌ में कुछ खुसर-पुसर किया । पांच मिनट में वह वेटर दो प्लेट पनीर टिक्का ले आया । इन प्लेटों में पनीर टिक्का दुगने से भी ज्यादा भरा हुआ था । 

मैंने आश्चर्य से कहा : यहां भी चलता है क्या ये सब कुछ ?  मतलब रिश्र्वत । 

वो बोले : भाईसाहब , हमारे देश के लोग महात्मा गांधी जी का बहुत सम्मान करते हैं । एक तरह से यह मान लो कि गांधी जी के परम भक्त हैं हम लोग । इन्हें जहां भी "गांधी जी" नजर आ जाते हैं , ये सारे काम छोड़ कर गांधीजी के सम्मान में जुट जाते हैं और तब तक नहीं हटते जब तक गांधीजी का सम्मान पूरा नहीं हो जाता है । ये वेटर लोग तो बहुत  छोटे से आदमी हैं । इसलिए इनके लिए तो पांच दस रुपए भी बड़े काम के हैं । पर बड़े बड़े नेता, अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक , सब लोग गांधीजी की पूजा करते हैं । 

मैंने शंका प्रकट करते हुए कहा कि यहां तो मुझे गांधीजी की कोई मूर्ति भी नजर नहीं आ रही है ।

वे हंसते हुए बोले : आप तो पहले भी प्रोफेसर थे और आज भी प्रोफेसर ही हो । पता नहीं अधिकारी कैसे बन गये ?
और फिर उन्होंने अपनी जेब से एक दस रुपए का नोट निकाला और उसमें गांधी जी की फोटो दिखाकर कहने लगे कि कागज के टुकड़े पर छपे गांधी जी का ही सम्मान करते हैं लोग , बाकी और किसी गांधी का नहीं । 

मुझे आज परम ज्ञान मिल रहा था । मैं गदगद हो गया। 

एक एक करके उन्होंने सारी स्टॉल्स  के पदार्थ आत्मसात कर लिये और मुझे भी करा दिये । मेरा पेट भर चुका था । मैंने कहा कि मेरा पेट तो भर चुका है इसलिए अब चलते हैं ।

वो जोर का ठहाका मारकर हंसते हंसते दोहरे हो गये । हंसते हुए बोले : ऐसे कैसे चले जायेंगे अभी । सेठ किरोड़ीमल ने खाने का निमंत्रण दिया है और हमने तो अभी केवल नाश्ता ही किया है , खाना तो खाया ही नहीं । बिना  खाना खाए जाना तो उनका अपमान होगा ना । 
पर भैया , हम जब से आये हैं, हमने चरने के अलावा और कुछ नहीं किया है  । अब तो पेट में गुड़गुड़ भी होने लगी है । 
उन्होंने अपनी जेब से एक पुड़िया निकाली और उसमें से कुछ गोली मुझे देकर बोले : ये गोली खा लो । इससे सारी गैस पास हो जायेगी । फिर अभी तो डांस भी करना है जिससे पेट में फिर से जगह बन जायेगी । फिर हम लोग ये खाना खा सकेंगे । 

यह कहकर वो जाने लगे । मैंने पूछा कहां चल दिये तो वे बोले । खाना खाने के लिए पेट में जगह तो बनानी पड़ेगी ना पहले ? इसलिए पहले थोड़े ठोस, द्रव और गैस पदार्थों का विसर्जन करके आता हूं अभी । और वे टॉयलेट की ओर चले गए।

मैं अभी उनका इंतजार कर ही रहा था कि अचानक ज्ञानी जी नजर आ गये । हमारे मौहल्ले के सबसे विद्वान व्यक्ति हैं ज्ञानी जी । लगता है कि इनके माता पिता ने इनकी बुद्धि और विद्वता को पहचान कर इनका नाम ज्ञानी रख दिया । राम राम करते हुए वे हमारा हाल चाल पूछने लगे । इतने में उनका एक बेटा हाथ में प्लेट लेकर उन्हें ढूंढता हुआ आ पहुंचा । उसकी प्लेट में ढेर सारा सलाद रखा हुआ था । 

ज्ञानी जी की निगाह जैसे ही सलाद पर पड़ी उनका पारा गरम हो गया और बांयें हाथ का एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर रसीद कर दिया । वह लड़का सात चक्कर खाकर वहीं स्थिर हो गया। मैं सकते में था । 

ज्ञानी जी बोले : इतनी भी तमीज नहीं है तुझमें । क्या मैंने तुझे यही सिखाया है ? अरे जब दुनिया भर का माल सामने पड़ा हुआ है तो फिर तू ये "घास फूस" क्यों चर रहा  है ? भांति-भांति की मिठाई , पकवान , दस तरह की चपाती और नाना भांति के व्यंजन छोड़कर ये दस रुपए किलो का खीरा , पांच रुपए किलो की मूली और बीस रुपए किलो के टमाटर खायेगा ? ये चीजें तो घर में ही बहुत हैं । इनको खाने के लिए थोड़े ही आये हैं ? अरे , मेरी इज्जत का ख्याल नहीं किया तो कोई बात नहीं , मगर सेठ जी की इज्जत का दीवाला क्यों निकाल रहे हो ? 

और वो कुछ और कहते इससे पहले ही वह लड़का बोल पड़ा । वो तो सब खा लिये थे मैंने बापू । अब तो बस जुगाली करने के लिए ये ... 

ज्ञानी जी को अपने पुत्र की ज्ञान भरी बात सुनकर अभिमान हो आया । कहने लगे : देखा गोयल साहब , इसे कहते हैं ज्ञानी का पुत्र परम ज्ञानी । और उन्होंने अपने पुत्र की पीठ थपथपाई । 

फिर वो कहने लगे कि अच्छा भाईसाहब । मैं अब चलता हूं । ये लिफाफा भी तो देना है सेठ जी को ।
मैं चौंका । अभी तक लिफाफा नहीं दिया आपने ? 

वे बोले : गोयल साहब, अपनी तो आदत है कि माथा देखकर तिलक करते हैं । जितना बड़ा माथा उतना बड़ा तिलक । घर से तीन लिफाफे लेकर चलता हूं मैं । एक 101 का , दूसरा 251 का और तीसरा 501 का । जैसी दावत वैसा लिफाफा । 

यह सुनकर मैं चकरा गया । मैंने पूछा कि तीन लिफाफे क्यों ? 
वे बोले " जहां खाने के लाले पड़ जाते हैं । खाने के लिए जंग लड़नी पड़ती है , वहां 101 रुपए का लिफाफा देता हूं । जहां ठीक-ठाक खाना मिल जाता है वहां 251 रुपए का लिफाफा और सेठजी जैसे खाने के लिए 501 रुपए का लिफाफा देता हूं । अब जैसा खाना वैसा ही लिफाफा । 

ज्ञानी जी ने हमें परम ज्ञान से लाभान्वित करा दिया । मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि लोग ऐसा भी करते हैं । मगर हाथ कंगन को आरसी क्या और पढे लिखे को फारसी क्या ? 

इतने में हंसमुख लाल जी हल्के होकर आ गये । बाहर गेट पर बरात भी आ चुकी थी । मेरा हाथ पकड़ कर वो गेट पर ले गये और डांस करने लगे । मुझे भी कहा । मैंने मना किया तो वे बोले : ये तो रस्म है भैया जी । बिना डांस के आपकी उपस्थिति मानी ही नहीं जायेगी । जब तक किसी शादी में आपकी डांस , खाना खाने , लिफाफा देने और आशीर्वाद देने की फोटो नहीं होगी तब तक तुम्हारी गिनती उपस्थित मेहमानों में नहीं होगी । 

इतने प्रवचन सुनने के बाद मैं भी पांव पटक पटक कर डांस करने लगा । 
हंसमुख लाल जी बड़े खिलाड़ी थे डांस के । क्या गजब का डांस करते हैं वे , मजा आ गया । बालीवुड में डांस के सबसे पुराने फिल्मी कलाकार भगवान से लेकर अमिताभ , मिथुन का डिस्को , गोविन्दा का ब्रैक डांस , सपना चौधरी डांस , नागिन डांस, शराबी डांस , मुर्गा डांस और अंत में लम्बलेट डांस । सबमें पारंगत थे वे । पूरे एक घंटा डांस किया उन्होंने । सब लोग मुझसे पूछने लगे कि ये सज्जन सेठ किरोड़ीमल के कोई खास आदमी हैं क्या ? जब मैंने उनका दूर का रिश्ता नजदीक से बताया तो सब लोग बोल पड़े । भई , बहुत नजदीकी रिश्ता है । फिर हम लोग वहां से चल दिए । 
तब तक साढ़े नौ बजे चुके थे । वो बोले : जल्दी करो नहीं तो खाना ख़त्म हो जायेगा । 
मैंने कहा कि इतने बड़े सेठ की शादी है और खाना ख़त्म ? ऐसा कैसे होगा ? 
वो बोले : खाना इससे खतम नहीं होगा कि इतने लोग आये हैं । खाना तो इससे खतम होगा कि लोग भर भर प्लेट खाना डस्टबिन में डाल रहे हैं । 

मैंने कहा: भैया हंसमुख लाल । बफर सिस्टम का तो मतलब ही यही होता है कि जितनी आवश्यकता हो उतना ही खाना प्लेट में लो और जो आइटम पसंद हैं केवल वही लो । लेकिन लोग तो सारे आइटम लेते हैं और वो भी प्लेट भर भर कर एक बार में ही ले लेते हैं । पूरा खाना तो खा नहीं सकते इसलिए बाकी का खाना डस्टबिन भगवान को भेंट चढ़ा देते हैं।
वो बोले : लोग पढ़े लिखे होकर भी मूर्खों जैसा आचरण करते हैं । एक तो भीड़ होने के कारण लोग डरते हैं कि बार बार लाइन में कौन लगेगा । इसलिए एक बार में ही पूरी प्लेट भर लेते हैं । और उस पर ये एक सौ छप्पन व्यंजन बनाने की बीमारी । अपनी शान ओ शौकत दिखाने के लिए इतना सब प्रर्दशन करने की आवश्यकता नहीं है । 

मैं बोला : हे मानव श्रेष्ठ, जिस तरह क्षत्रिय अपनी वीरता का , ब्राह्मण अपनी विद्वत्ता का और वैश्य अपने धन के प्रर्दशन का कोई मौका नहीं छोड़ता है उसी तरह महिलाएं भी मेकअप करके अपने सौंदर्यका प्रदर्शन करने का कोई मौका नहीं छोड़ती हैं । इसलिए ये सब तो होता ही रहेगा । लोग दिखावे के लिए इतने आइटम तो रखेंगे रखेंगे ही । चूंकि लोग सब आइटम चख भी नहीं सकते हैं । इसलिए खाना डस्टबिन की शोभा तो बढाएगा ही । डस्टबिन खाली खाली अच्छे नहीं लगते हैं । चाहे कितने भी बैनर लगवा लो जिन पर लिखा हो कि कृपया झूठन नहीं छोड़ें   उसके बावजूद लोग अपनी आदत से मजबूरजो ठहरे ।  मानेंगे नहीं । एक सज्जन तो उस बैनर के सामने ही खड़े होकर खाना खा रहे थे और बैनर को देख भी रहे थे । फिर थोडा  सा खाना चखकर बाकी भरी प्लेट उसी बैनर के सामने कारपेट पर रखकर ही चले गए । उन्होंने बैनर का पूरा सम्मान किया । बैनर में लिखा था कि कृपया झूठन डस्टबिन में नहीं डालें । उस बंदे ने भरी झूठी प्लेट डस्टबिन में नहीं डाली बल्कि कारपेट पर रख दी । ऐसे ऐसे महान "संतो" के चरण स्पर्श करने का मन करता है । बाद में कैटरिंग वाला उस प्लेट को डस्टबिन में डालकर आया । 

हंसमुख लाल जी बोले : ये सब तो चलता ही रहेगा, भाईसाहब । कौन परवाह करता है ? लो आओ , दूध जलेबी लेते हैं और फिर चलते हैं । 
मैंने कहा : अभी दूध जलेबी के लिए जगह बची  है क्या ? 

वो बोले : भाईसाहब , हमारी अम्मा रात  को दूध पिलाये बिना हमें सुलाती नहीं थी । इसलिए बचपन से ही आदत पड़ी हुई है सोने से पहले दूध पीने की । और जलेबियों के तो हम परम भक्त हैं । उन्हें इगनोर कर उनका अपमान कैसे कर सकते हैं ?

अब मैं हंसमुख लाल जी का लोहा मान गया था । उन्होने छक कर जलेबी खाई और दो कुल्हड़ दूध पीया । दूध जलेबी खाकर वे चलने लगे । गेट पर पान वाला बैठा था । छः पान  देने के लिए उन्होंने कहा । मैंने कहा कि अपन तो दो ही आदमी हैं फिर पान छः क्यों ? 

वो बोले : गोयल साहब , थोड़ी दुनियादारी भी सीखो । केवल पढ़ने लिखने से ही कोई समझदार नहीं बन जाता है । दोनों भाई एक एक पान तो यहीं खायेंगे और दो दो पान रस्ते के लिए पैक करा लिये हैं । 

मैंने आज उनके पहली बार चरण स्पर्श किये और अपने को धन्य मान कर भगवान का आभार जताया कि उन्होंने मुझे हंसमुख लाल जैसा एक अभिन्न मित्र दिया है । भगवान सबको हंसमुख लाल जी जैसा मित्र अवश्य दे ।

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4 Comments

shweta soni

21-Jul-2022 07:51 PM

Bahot sunder rachna 👌

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Gunjan Kamal

21-Jul-2022 06:01 PM

👌🙏🏻

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Punam verma

21-Jul-2022 09:37 AM

Nice

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